म॒हः स रा॒य एष॑ते॒ पति॒र्दन्नि॒न इ॒नस्य॒ वसु॑नः प॒द आ। उप॒ ध्रज॑न्त॒मद्र॑यो वि॒धन्नित् ॥
mahaḥ sa rāya eṣate patir dann ina inasya vasunaḥ pada ā | upa dhrajantam adrayo vidhann it ||
म॒हः। सः। रा॒यः। आ। ई॒ष॒ते॒। पतिः॑। दन्। इ॒नः। इ॒नस्य॑। वसु॑नः। प॒दे। आ। उप॑। ध्रज॑न्तम्। अद्र॑यः। वि॒धन्। इत् ॥ १.१४९.१
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब एकसौ उनचासवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् और अग्न्यादि पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हैं ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ पुनर्विद्वदग्न्यादिगुणानाह ।
हे मनुष्या यूयं य इनस्येनो वसुनो महो रायो दन् पतिरेषते य एतस्य पदे ध्रजन्तमद्रय इदिव उपाविधन् स सर्वैः सत्कर्त्तव्यः स्यात् ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान व अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥